Wednesday, February 26, 2014

क्यूंकि सड़क पर तो हम ही मिलतें हैं.....


ऑटोचालक जैनू
जोड़ा-ए-माँ बाप ने नाम दिया है जैनू. पेशे से ऑटोरिक्शा चालक और प्रजाति- आम आदमी. भारत की भीड़ का वो ‘मिनिमम कॉमन डिनॉमिनेटर’ जो दशमलव की बिंदी की तरह कहीं भी लगकर कभी वोट और कभी चवनिया फ़िल्मों के कलेक्शन कई गुना घटा-बढ़ा सकता है. या फिर मारे गए गुलफ़ाम का हीरामन कहूं, जो सोच रहा है कि अपने ऑटो पर बैठी संभ्रांत सवारी से बात कैसे शुरू की जाय? कि उसे ‘आप’ कहा जाय या ‘तुम’?
कहतें हैं कि दुनिया में हर चीज़ के दो प्रयोजन होते हैं- एक प्रत्यक्ष और दूसरा अप्रत्यक्ष. इस तर्ज़ पर राजनीति का अघोषित मकसद शायद अजनबियों के बीच बातें शुरू करवाने का उत्प्रेरक बनना है. घर से यूनिवर्सिटी तक पहुँचने ‘आप’ का एक पोस्टर पड़ा. मेरा उसे देखना जैनू रियर व्यू मिरर में ताड़ लेते हैं. “अबकी वोट दोगे इनको?” बस, बातचीत शुरू हो गयी.
“आप लड़कियों की वजह से क्लास लग रही है आजकल हमारी.” तो असल गांठ ये है!
भारत सरकार, मानस नाम की एक संस्था के सहयोग से दिल्ली में जेंडर सेन्सिटाईज़ेशन प्रोग्राम चला रही है. ऑटो रिक्शा चालक और पुलिस वालों के लिए. चार दिनों तक हर रोज़ दो घंटे की क्लास करनी पड़ेगी.
“हमारा लाइसेंस तभी रिन्यू होगा.” बदलाव के लिए या तो दंड देना होगा या फिर लालच. नए से लग रहे ओटो में महिला फ्रेंडली होने के पोस्टर पटे पड़ें हैं. आप सोच सकतें हैं कि इनसे होगा क्या? लेकिन शुरुआत तो कहीं ना कहीं से करनी ही होगी. बरसों की व्यवस्था चुटकियों में नहीं बदलती. पर सरकार और क़ानून हमेशा से ही बदलाव की बयार चलाने में सक्षम रहें है. सही दिशा मिलनी चाहिए बस.
जैनू का ऑटो
जैनू की क्लास का कंटेंट जानने की इच्छा हुई. “आप ही के जैसी लड़कियां सिखातीं हैं हमें. (थोड़ी तगड़ी आपसे कम हैं!) हमें बताया जाता है कि कोई लेडीज़ सवारी को ये मत समझो कि हमारी ग्राहक है, ये समझो कि हमारी माँ है, बहन है उसकी इज्ज़त करो.” इस बात के साथ अपनी समस्याएँ है. क्या ये ‘माँ-बहन’ और ‘सुरक्षा देने’ वाला मामला उसी सिस्टम का प्रतीक नहीं है जिससे लड़ने की कोशिश की जा रही है? उन लड़कियों का क्या जो ‘माँ- बहन’ की तरह रहती, बरतती, पहनती, ओढ़ती नहीं है. मनमर्ज़ी से देर रात आती-जाती हैं? क्या सुरक्षा का जिम्मा राज्य से हटकर जनता के हाथ में आ जाने का मतलब ये होगा कि आत्मनिर्भर लड़कियां, इन जोशीले ‘रक्षकों’ की शिकायत भरी भिनभिनाहट सुनेंगी कि उनके स्वच्छंद व्यवहार ने ही उनकी सुरक्षा करना कितना मुश्किल बना दिया है? आर ख़ुद जैनू का क्या जिन पर इन अतिरिक्त अपेक्षाओं भार आ पड़ा है? या फिर लोहे को लोहे से काटने, ज़हर को ज़हर से ही उतारने की तर्ज़ पर ये फ़ार्मूला सफ़ल होगा?

अभी कुछ भी कहना मुश्किल है. इतना तय है कि समानता पर आधारित समाज में पुरुष को सिर्फ़ रक्षक या भक्षक ही नहीं समझा जाएगा. लड़की भी किसी की ज़िम्मेदारी नहीं होगी. लेकिन वहां तक पहुँचने के लिए शायद इन पूर्वस्थापित, पितृसत्तात्मक प्रतीकों का सहारा लेना ही पड़ेगा. जो पहले से ही लैंगिक समानता के पक्षधर हैं उनके लिए शायद ये मुहिम ज़्यादा काम की नहीं है लेकिन अगर इनसे इतर लोगों को प्रभावित करना है तो उनकी मानसिकता में झांकना पड़ेगा. उन्हीं की भाषाई गुफ़ा-कन्दराओं में भटकना पड़ेगा. कुछ वैसे ही जैसे ‘पोलियो उन्मूलन’ कार्यक्रमों के लिए धार्मिक फ़तवों की मदद लेनी पड़ी था. शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित करने के लिए ‘बहू-बेटियों’ के खुले में शौच करने को उनकी ‘मर्यादा’ के ख़िलाफ़ बताना पड़ा था.
आखिर इस ‘मिनिमम कॉमन डिनॉमिनेटर’ तक जो ज्ञान न पहुंचे वो किस काम का? क्यूंकि बकौल जैनू ही, “रात-बेरात कहीं भी जाओ, सड़क पर तो हम ही मिलेंगे मैडम!”
अपना कॉलेज आ चुका था. “हम भी चलते हैं मैडम. वापस बुराड़ी जाना है. सुबह भी क्लास की थी अभी भी दोबारा दो घंटे बुराड़ी में क्लास. मेरे जैसे बहुत से ऑटो वालों की.” इस कथन में उलाहना तो है लेकिन तिरस्कार नहीं.

अब चलना होगा हीरामन. फिर मिलेंगे. तब तक शायद कुछ बदल चुका होगा या फिर बदलाव का दौर यूं ही चल रहा होगा. सफ़र शायद मंजिल से ज़्यादा सिखाते हैं. सबक सीखने की प्रक्रिया में हम भी कुछ बदल जाते हैं और शायद सबक भी वैसा का वैसा नहीं रहता.      

ये लेख जनसत्ता में प्रकाशित है -
http://www.jansatta.com/index.php?option=com_content&view=article&id=62632%3A2014-03-24-06-55-03&catid=21%3Asamaj 

फ़ोटोग्राफ़ में- ऑटोचालक जैनू और उनका ऑटो.

7 comments:

  1. I believe such initiatives will help to eradicate problems at least to some extent. But again its success will depend on society. Impressible...by the style this article is written !! Very nice !! Keep on writing ....!!

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  2. Hey Shweta , m waiting for ur new article on visfot.com

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    1. Thank you Pradeep Ji. I will writre something very soon. :)

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    2. http://visfot.com/index.php/comentry/10997-titanic-ka-kaayar.html
      Lijiye Pradeep ji. :)

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    3. Thank u Shweta ji....
      Its really nice.

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    4. U are welcome and thanks again! :)

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